डलहौज़ी हलचल (चंडीगढ़) : हमारा अधिकतर उत्पादन चीन पर निर्भर करती है, ऐसे में क्या हम आयात को रोक सकते हैं? अगर हमें चीन पर अपनी निर्भरता कम करनी है, तब भी हमे कम से कम 10 साल लग जायेंगे, ये शब्द चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, घड़ूआं द्वारा आयोजित की गई वर्चुअल मीट में माइंस एंड जियोलॉजी सेक्रेटरी श्री राहुल भंडारी (आईएएस पंजाब) ने कहे। भारत-चीन संबंधों के मद्देनजर बात करते हुए उन्होंने कहा कि चीन 14 ट्रिलियन और भारत 3 ट्रिलियन डॉलर है और हम इन आंकड़ों को नजरअंदाज़ नहीं कर सकते। चीन के पास हमसे ज्यादा साइंटिस्ट और इंजीनियर हैं, चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश और मेनुफेक्चरिंग कैपिटल है। उन्होंने कहा कि लोग पूछते हैं कि हम क्यों नहीं चीन पर प्रत्यक्ष रूप से आक्रमण कर और उसकी गतिविधियों का मुहतोड़ जवाब दें, तो इस बात के लिए मैं कुछ आंकड़ों के बारे में बात करना चाहता हूँ। चीन और भारत की जीडीपी दर 1978-1980 तक लगभग एक जैसी रही है, परन्तु अब भारत की जीडीपी दर 5 गुना कम है। नहीं ! क्योंकि यह हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। यह हमारे लिए सही नहीं होगा कि हम चीन पर अधिक टैक्स ड्यूटी लगाएं। भारत भी एक उभरती हुई शक्ति है, मगर हमे भी अपनी कमजोरियां याद रखनी होगी। जानकारी के लिए बता दें 'दि फ्यूचर ऑफ़ इंडिया-चीन रिलेशन्स' विषय पर चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, घड़ूआं द्वारा 21 अक्तूबर को वर्चुअल मीट आयोजित की गई, जिसमें डिफेन्स क्षेत्र के विभिन्न प्रख्यात पेनलिस्ट्स ने भारत और चीन के संबंधों और संभावित जरूरतों के बारे में बात की, जिनमें दि फ्यूचर ऑफ़ इंडिया-चीन रिलेशन्स" विषय पर आयोजित की जा रही वर्चुअल बैठक में पूर्व भारतीय नौसेना प्रमुख और चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के पूर्व अध्यक्ष एडमिरल (सेवानिवृत्त) सुनील लांबा; पूर्व जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ उत्तरी कमान, भारतीय सेना, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) दीपेंद्र सिंह हुड्डा; पूर्व जनरल ऑफिसर, कमांडिंग-इन-चीफ पूर्वी कमान, भारतीय सेना लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) प्रवीण बख्शी, राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ और एमेरिटस प्रोफेसर, सेण्टर फॉर पालिसी रिसर्च श्री भरत कर्नाड और उच्च शिक्षा और भाषा सचिव, सचिव जल संसाधन और मिशन डायरेक्टर, डायरेक्टरेट ऑफ़ ग्राउंड वाटर मैनेजमेंट, माइंस एंड जियोलॉजी सेक्रेटरी श्री राहुल भंडारी (आईएएस पंजाब) शामिल रहे।
इस अवसर पर लेफ्टिनेंट जनरल दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने सीमा विवादों से परे भारत-चीन के बीच लंबे समय से आर्थिक, सामाजिक और व्यापारिक संबंध हैं, जिसके कारण दोनों भारत-चीन के बीच विभिन्न क्षेत्रों में असहमति और संबंधों में अनिश्चितता और कड़वाहट के कई मुद्दे हैं, लेकिन फिर भी दोनों देशों को आपसी लाभ के लिए एक स्वर से बात करने की जरूरत है। भारत को चीन के प्रति दीर्घकालिक नीति तैयार करनी है और हमें विकल्पों की सीमा को देखना होगा। लेफ्टिनेंट जनरल दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि भारत-चीन सीमा मुद्दा पुराना हो सकता है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में इसमें बड़े मूलभूत परिवर्तन हुए हैं। विवादों को अलग रखने और द्विपक्षीय संबंधों के साथ आगे बढ़ने के लिए समझौता किया गया, चाहे वह व्यापार हो या सांस्कृतिक संबंध। उन्होंने कहा कि अगर भविष्य के संबंधों पर चर्चा की जानी चाहिए, तो दोनों देशों को वर्तमान स्थिति को सुधारने के लिए सीमा क्षेत्रों से बड़ी संख्या में सैनिकों को वापस लेना चाहिए। जिससे तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो सकती है।
इस अवसर पर नेशनल सिक्योरिटी एक्सपर्ट श्री भरत कर्नाड ने कहा कि चीन हमेशा से ही क्रांतिकारी व परिवर्तनवादी प्रवृत्ति का है और इसके बिलकुल विपरीत भारत आदर्श और नैतिकता को तवज्जो देते हुए अपनी प्रतिक्रियाओं तथा विदेश नीतियों को निर्धारित करता है। भारत को भी इस मनोभाव व नजरिये को अपनाने की जरूरत है और चीन को उसी की भाषा में जबाव देना सीखना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार को भारतीय टैलेंट को प्रोत्साहित करने के प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें अन्य देशों पर अपनी निर्भरता को कम करने के प्रयास करते हुए विदेश की इन्वेस्टमेंट को प्रेरित करने के साथ-साथ भारतीय इनोवेटर्स/ इन्वेस्टर्स को प्रोत्साहित करने के कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा कि विदेश निति ही किसी भी देश के नजरिये को प्रदर्शित करती है और हमें अपनी सेक्योरिटी का दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है। लदाख और अन्य सीमाओं पर चीन द्वारा ऐसा माहौल बना दिया गया है, जो चिंतनीय है। उन्होंने कहा कि हम भारतीय आदर्श और यूनिवर्सल आईडिआस की बात करते हैं और चीन इस बात का फायदा उठा सकता है।
लदाख की स्थिति और चीन जो भी कर रही है, चीन के साथ संबंधों के बारे में बात करते हुए एडमिरल (सेवानिवृत्त) सुनील लांबा ने कहा कि उत्तर भारत में समुद्री क्षेत्र के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारत 7500 किलोमीटर लम्बी कोस्ट लाइन है, इंडियन ओशन तीसरा सबसे बड़ा ओशन है। भारत युवा आबादी वाला देश है, जहाँ लोगों आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, जहाँ उनकी मांग और जरूरते भी बढ़ रही हैं। इंडियन ओशन रोड और समुद्री रास्ता है, पश्चिम और पूर्व को एक-दूसरे से जोड़ता है। सिक्योरिटी एनवायरनमेंट अनिश्चित है। उन्होंने कहा कि एक और यूएस उभरती हुई शक्ति के रूप में जहाँ नजर आ रहा है, वहीँ चीन उसके प्रतिद्वंद्वी के रूप में आगे बढ़ रहा है। समुद्री इलाकों और अन्य राज्यों में चीन के साथ पनपते विवाद और तनाव को ध्यान में रखते हुए राजनितिक फैसले लिए जाने चाहिए। मिलिट्री एक्ससरसाइज़ का दायरा बढ़ाने के लिए राजनितिक रणनीतियां बनाई जानी चाहिए, नेवी को विभिन्न क्षेत्रों में तैनात करते हुए अपनी सैन्य शक्ति को शक्तिशाली करने के प्रयास करने होंगे। वहीँ अन्य देशों से सहयोग प्राप्त करने की रणनीतियों पर कार्य करना चाहिए।
डोकलाम मुद्दे पर बात करते हुए भारतीय सेना लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) प्रवीण बख्शी ने कहा कि चीन अपनी मिलिट्री फ़ोर्स का प्रयोग करते हुए अपने राजनितिक और राजनयिक उद्देश्यों को पूरा करने में अग्रसर है। डोकलाम क्षेत्र में बढ़ते विवाद के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस मुद्दे को सहजता से सुलझाने की जरूरत है। चीन यहाँ कुछ बड़ा करना चाहती है, उनकी आकांक्षा डोकलाम से सड़क बनाने की है। भारतीय सेना इस तनाव को कम करने में प्रयासरत हैं और हमें डोकलाम मुद्दे पर गहनता से विचार करने और बॉर्डर्स पर शांति बहाल करने की आवश्यकता है। दोनों देशों को परिपक्वता के साथ काम करना चाहिए और क्षेत्र में शांति बनाए रखना चाहिए। इस मामले को आगे बढ़ाने से बचने के लिए उन्हें शांति वार्ता करनी चाहिए।